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ग़ज़ल
जिस हुस्न के जल्वे हैं आरिफ़ की निगाहों में
वो हुस्न बनावे है का'बे को सनम-ख़ाना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मैं ने तो बनाई थी फ़क़त आप की तस्वीर
दिल मेरा मगर आज सनम-ख़ाना लगे है