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ग़ज़ल
सालिक है क्यूँ तख़य्युल-ए-तर्क-ए-वजूद में
नक़्श-ए-सुवर का रंग है तेरे शुहूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
अज़ल से कुछ ख़राबी है कमानों की समाअत में
परिंदो शोख़ी-ए-सौत-ओ-सदा से कुछ नहीं होता
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
जोश-ए-नशात हो चुका सौत-ए-हज़ार हो चुकी