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ग़ज़ल
लकद कूब-ए-हवादिस का तहम्मुल कर नहीं सकती
मिरी ताक़त कि ज़ामिन थी बुतों की नाज़ उठाने की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या 'मीर' तुझ को नामा-स्याही का फ़िक्र है
ख़त्म-ए-रुसुल सा शख़्स है ज़ामिन नजात का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
आज का दिन तो बहुत ख़ैर से गुज़रा 'नासिक'
कल की क्यूँ फ़िक्र करूँ कल का ख़ुदा ज़ामिन है
अतहर नासिक
ग़ज़ल
मैं ने माना ज़ामिन-ए-तसकीन-ए-दिल है तर्क-ए-शौक़
लेकिन अपने वाक़िआ'त-ए-ज़िंदगी को क्या करूँ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
रियाज़ मजीद
ग़ज़ल
नशात-ए-ज़ीस्त की ज़ामिन है अब याद-ए-मोहब्बत ही
यही ख़ुद इश्क़ के ज़ख़्मों का मरहम होती जाती है