आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ضبط_الم"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ضبط_الم"
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-अलम से दिल है परेशाँ इस दिल को समझाए कौन
आँखों से आँसू गिरते हैं ख़ूँ इन को रुलवाए कौन
सय्यद मंज़र हसन दसनवी
ग़ज़ल
तुम्हें नाज़ ज़ब्त-ए-अलम पर है 'क़ैसर'
मुझे अश्क आँखों में भरने का ग़म है
राणा ख़ालिद महमूद कैसर
ग़ज़ल
ग़म से निस्बत है जिन्हें ज़ब्त-ए-अलम करते हैं
अश्क को ज़ीनत-ए-दामाँ नहीं होने देते
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
सख़्त मजबूर हूँ मैं ज़ब्त-ए-अलम से 'साक़िब'
ख़ुद मिरी आह न कर दे कहीं बर्बाद मुझे
साक़िब रामपुरी
ग़ज़ल
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
तमाशा देख लेना ख़ून-ए-दिल आँखों से छलकेगा
अगर ज़ब्त-ए-अलम हद से ज़ियादा कर लिया मैं ने
अक़ील संभली
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-अलम के इम्तिहाँ दार-ओ-रसन के मरहले
कौन सी मुश्किलें नहीं अहल-ए-वफ़ा की राह में
नसीम शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
मिरे ज़ब्त-ए-अलम ने ताब-ए-गोयाई न दी मुझ को
सुनाता अहल-ए-आलम को फ़साने ज़िंदगी भर के
हिरमाँ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ज़ख़्मों को तुम लाख छुपा लो ज़ब्त-ए-अलम में ताक़ तो हो
आईने ने झूट कहा हो ये कैसे हो सकता है