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ग़ज़ल
ताएर-ए-क़िबला-नुमा बन के कहा दिल ने मुझे
कि तड़प कर यूँ ही मर जाएगा जा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ताएर-ए-क़िबला-नुमा कहता है मुज़्तर हो कर
मुर्ग़-ए-बिस्मिल की तरह ताक़त-ए-परवाज़ नहीं
फ़ाख़िर लखनवी
ग़ज़ल
ऐश जावेद उन को हासिल है जो हैं तेरी तरफ़
ताएर-ए-क़िबला-नुमा करता है सुब्ह-ओ-शाम रक़्स
बयान मेरठी
ग़ज़ल
उस बिन न क़िबला समझूँ न क़िबला-नुमा को मैं
क़िबला उसे दिल अपने को क़िबला-नुमा किया
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
खींचे बुतों ने अपनी तरफ़ ज़ाहिदों के दिल
क़िबला-नुमा फिरे हैं शिवालों के सामने
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
सम्तों के तिलिस्मात में गुम है मिरी ताईद
क़िबला तो है इक क़िबला-नुमा चाहिए मुझ को
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
क़ाएम है उस की सम्त न लग़्ज़िश न इज़्तिराब
मेरी जबीं के सामने क़िबला-नुमा है क्या