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ग़ज़ल
इश्क़-ए-सादिक़ जो असीर-ए-तमा-ए-ख़ाम न था
सई-ए-नाकाम के ग़म से मुझे कुछ काम न था
अली मंज़ूर हैदराबादी
ग़ज़ल
न सी चश्म-ए-तमा ख़्वान-ए-फ़लक पर ख़ाम-दसती से
कि जाम-ए-ख़ून दे है हर सहर ये अपने मेहमाँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तालिब को अपने रखती है दुनिया ज़लील ओ ख़्वार
ज़र की तमअ से छानते हैं ख़ाक न्यारिये
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
गुल-रुख़ ओ गुल-गूं क़बा ओ गुल-अज़ार ओ गुल-बदन