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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मर गई सर्व पे जब हो के तसद्दुक़ क़ुमरी
उस से उस दम भी न तौक़ अपने गुलू का निकला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सहरा ज़िंदाँ तौक़ सलासिल आतिश ज़हर और दार ओ रसन
क्या क्या हम ने दे रखे हैं आप के एहसानात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
पास था ज़ंजीर तक का तौक़ पर क्या मुनहसिर
वो किसी में अब कहाँ जो तेरे दीवाने में था
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
कि ज़ेवर हो गया तौक़-ए-ग़ुलामी अपनी गर्दन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
'असद' ज़िंदानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़त-हा-ए-ख़ूबाँ हूँ
ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में