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ग़ज़ल
जिन के लहू से निखर रही हैं ये सरसब्ज़ हमेशगियाँ
अज़लों से वो सादिक़ जज़्बों तय्यब रिज़्क़ों वाले थे
मजीद अमजद
ग़ज़ल
बज़्म-ए-तरब में रात अजब माजरा रहा
था उन का इल्तिफ़ात मगर बे-रुख़ी के साथ
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
उस की शफ़्फ़ाफ़ी ही उस का हुस्न उस की ज़िंदगी
कैसे बन जाएगा 'तय्यब' साएबाँ शीशे का घर
सय्यद तय्यब वास्ती
ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किसे ज़िंदगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शब-ए-तरब
मगर ऐ निगार-ए-वफ़ा तलब तिरा ए'तिबार कोई तो हो