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ग़ज़ल
दस्त-ए-सय्याद भी आजिज़ है कफ़-ए-गुल-चीं भी
बू-ए-गुल ठहरी न बुलबुल की ज़बाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
यूँ तो हम आजिज़-तरीन-ए-ख़ल्क़-ए-आलम हैं वले
देखियो क़ुदरत ख़ुदा की गर हमें क़ुदरत हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
बुलाते क्यूँ हो 'आजिज़' को बुलाना क्या मज़ा दे है
ग़ज़ल कम-बख़्त कुछ ऐसी पढ़े है दिल हिला दे है
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
तुम वो नाज़ुक कि ख़मोशी को फ़ुग़ाँ कहते हो
हम वह आजिज़ कि तग़ाफ़ुल भी सितम है हम को
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
मय-ख़ाने में आजिज़ हुए आज़ुर्दा-दिली से
मस्जिद का न रक्खा हमें आशुफ़्ता-सरी ने