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ग़ज़ल
फिर सजा देगा वो यादों के अजाइब-घर में
सोच कर अहद-ए-जुनूँ का कोई सिक्का मुझ को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मैं अपने जिस्म के मुर्दा अजाइब-घर की ज़ीनत हूँ
मुझे दीमक की सूरत चाटती है ज़िंदगी मेरी
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
ग़नीमत है कि जंगल के उसूलों को नहीं माना
वगर्ना आशियानों को अजाइब-घर बना लेते
नवीन सी. चतुर्वेदी
ग़ज़ल
अजाइब लुत्फ़ हैं कू-ए-तवक्कुल की फ़क़ीरी में
ख़ुदाई है यहाँ धूनी रमाए जिस का जी चाहे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
'अजाइब शग़्ल में थे रात तुम ऐ शैख़ रहमत है
मैं उस रीश-ए-बुलंद और दामन-ए-कोताह के सदक़े
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
नहीं अजाइब कुछ आँख ही में रूतूबतें तीन सात पर्दे
ओक़ूल दस मुद्रिकात दस हैं सो करते रहते हैं काम तीसों
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अजाइब-घर में रखिए ये किसी क़ारून का सर है
मिला है ये भी आसार-ए-क़दीमा के दफ़ीनों में