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ग़ज़ल
जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात
तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
तुझ से जलता है जो वो और जलाते हैं उसे
मिरे हक़ में मिरे दुश्मन की 'अदावत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
एक तहज़ीब है दोस्ती की एक मेयार है दुश्मनी का
दोस्तों ने मुरव्वत न सीखी दुश्मनों को अदावत तो आए