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ग़ज़ल
ज़ेब-ए-तन वाइ'ज़ के देखी है क़बा-ए-ज़र-निगार
सर पे अमामा है इक धोबी के गट्ठर की तरह
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
थम गया दौरा-ए-हयात रुक गई नब्ज़-ए-काएनात
इश्क़-ओ-जुनूँ की गर्मी-ए-हमहमा-ज़ा को क्या हुआ
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
ऐ मुग़्बचों तुम्हारा बायाँ क़दम मैं लूंगा
ज़ाहिद का गर अमामा रेहन-ए-शराब होगा
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
रिंद हाँ अम्मामा-ए-ज़ाहिद पे हूँ हथ-फेरीयाँ
कश्ती-ए-मय का इक अच्छा बादबाँ हो जाएगा
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
सर पे अमामा हाथ में सुब्हा 'शौक़' न जा बुत-ख़ाने को
बुत हैं बड़े काफ़िर रख देंगे सर इल्ज़ाम बुरा
शौक़ क़िदवाई
ग़ज़ल
रिया-ए-दल्क़ से बेज़ार हैं जो हैं आज़ाद
अमामा भी मुझे एक बोझ है गिराँ सर पर