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ग़ज़ल
डसते हैं सारे ख़्वाब जो बचपन में देखे थे
'ग़ाफ़िल' जवानी में जिन्हें पूरा नहीं किया
अंश प्रताप सिंह ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
चश्म-ए-बे-ख़्वाब में है ख़्वाब की सूरत इक शख़्स
ख़ुद से ग़ाफ़िल भी है और महव-ए-ख़ुद-आराई भी
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ग़ज़ल
रात इस अंदाज़ से देखा है तुम को ख़्वाब में
नींद में ग़ाफ़िल भी थे हम और कुछ बेदार से
नसीम अंसारी
ग़ज़ल
अपने मर-मिटने के अस्बाब बहुत देखता हूँ
'इश्क़ वाला हूँ तिरे ख़्वाब बहुत देखता हूँ