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ग़ज़ल
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
इश्क़ में बर्बादियों का क्यों तुम्हें इल्ज़ाम दूँ
सब मिरी ही ग़लतियाँ है तेरे सर कुछ भी नहीं
जावेद उल्फ़त
ग़ज़ल
जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर
क्या ही पछताता था मैं क़ातिल का दामाँ छोड़ कर