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ग़ज़ल
गर मोहब्बत है तो वो मुझ से फिरेगा न कभी
ग़म नहीं है मुझे ग़म्माज़ को भड़काने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
इश्क़ रुस्वा हो चला बे-कैफ़ सा बेज़ार सा
आज उस की नर्गिस-ए-ग़म्माज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
देख लो अश्क-ए-तवातुर को न पूछो मिरा हाल
चुप रहो चुप रहो इस बज़्म में ग़म्माज़ आया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ में भी कब आ सकता था मैं सय्याद की ज़द में
मिरी ग़म्माज़ थी शाख़-ए-नशेमन की कम औराक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शर्म है तर्ज़-ए-तलाश-ए-इंतिख़ाब-ए-यक-निगाह
इज़्तिराब-ए-चश्म बरपा दोख़्ता-ग़म्माज़ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बद-गुमाँ 'इश्क़ को सद वहम-ओ-यक़ीं के खटके
शोख़ी-ए-चश्म सुख़न-साज़ है ग़म्माज़ जुदा
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कोई ग़म्माज़ नहीं मेरी तरफ़ से ऐ 'ज़ौक़'
कान उस के मिरी फ़रियाद ही भर देती है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
पड़ेगा तेरे जी में शक न सुन ग़म्माज़ की बातें
हज़ार आईना हो दिल पर कुदूरत आ ही जाती है
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
ख़ौफ़ ग़म्माज़ अदालत का ख़तर दार का डर
हैं जहाँ इतने वहाँ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा और सही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
मैं हूँ शाकी ओ नाज़ाँ तो फ़क़त इस रस्म-ए-दुनिया से
वही ग़म्माज़ हो जाता है जो हमराज़ होता है