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ग़ज़ल
इलाज आतिश-ए-'रूमी' के सोज़ में है तिरा
तिरी ख़िरद पे है ग़ालिब फ़िरंगियों का फ़ुसूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़रंगी शीशागर के फ़न से पत्थर हो गए पानी
मिरी इक्सीर ने शीशे को बख़्शी सख़्ती-ए-ख़ारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जिन जिन के तू मज़ार से गुज़रा वो जी उठे
बाक़ी रहे हैं एक तिरे फ़ानियों में हम
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
सभी को अगले फ़र्संगों की पैमाइश मुक़द्दर थी
मुसाफ़िर तय-शुदा मीलों के पत्थर छोड़ जाते थे
नश्तर ख़ानक़ाही
ग़ज़ल
गर हो तमंचा-बंद वो रश्क-ए-फ़िरंगियाँ
बाँके मुग़ल बचे न करें ख़ाना-जंगियाँ