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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी
फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बहार का आज पहला दिन है चलो चमन में टहल के आएँ
फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है
शबीना अदीब
ग़ज़ल
वही ताएरों के झुरमुट जो हवा में झूलते थे
वो फ़ज़ा को देखते हैं तो अब आह भर रहे हैं
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
ये फ़ज़ा के रंग खुले खुले इसी पेश-ओ-पस के हैं सिलसिले
अभी ख़ुश-नवा कोई और था अभी पर-कुशा कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग