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ग़ज़ल
ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
बलाएँ लेते हैं उन की हम उन पर जान देते हैं
ये सौदा दीद के क़ाबिल है क्या लेना है क्या देना
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
उसे 'क़ाबिल' की चश्म-ए-नम से देरीना तअ'ल्लुक़ है
शब-ए-ग़म तुम को क्या जाने सितारो तुम तो सो जाओ
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता
यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता