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ग़ज़ल
ज़िंदगी में जो तुम्हें ख़ुद से ज़ियादा थे अज़ीज़
उन से मिलने क्या कभी जाते हो क़ब्रिस्तान भी
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
कितना मा'नी-ख़ेज़ है ये रूप क़ब्रिस्तान का
क़ब्र से लिपटे हुए हैं ख़ामुशी और चंद फूल
यासिर रज़ा आसिफ़
ग़ज़ल
पहले क़ब्रिस्तान आता है फिर अपनी बस्ती आती है
जाने कितनी क़ब्रों से हो कर शम-ए-हस्ती आती है
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
किसी ख़ामोश चेहरे पर वो इत्मीनान का मंज़र
जिगर को काटता है अब भी क़ब्रिस्तान का मंज़र
ताहिर अदीम
ग़ज़ल
ज़ह्न पर दुनिया की लालच फिर से हावी हो गई
दे के मिट्टी मैं अभी लौटा था क़ब्रिस्तान से
दीदार बस्तवी
ग़ज़ल
गुल न थे जिस में वो गुलशन भी था जंगल की तरह
घर वो क़ब्रिस्तान था जिस में कोई बच्चा न था