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ग़ज़ल
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
कोई बज़्म हो कोई अंजुमन ये शिआ'र अपना क़दीम है
जहाँ रौशनी की कमी मिली वहीं इक चराग़ जला दिया
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
सभी के ज़ेहन हैं मक़रूज़ क्या क़दीम ओ जदीद
ख़ुद अपना नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं दिखाई न दे
वहीद अख़्तर
ग़ज़ल
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़दीम
गुज़र इस अहद में मुमकिन नहीं बे-चोब-ए-कलीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़मीं बदली फ़लक बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी बदला
तमद्दुन के क़दीम अक़दार बदले आदमी बदला