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ग़ज़ल
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
लाल डोरे तिरी आँखों में जो देखे तो खुला
मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ हैं पैमाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
नहीं था मुस्तहिक़ 'मख़मूर' रिंदों के सिवा कोई
न होते हम तो फिर लबरेज़ पैमाने कहाँ जाते
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
किसी की महफ़िल-ए-इशरत में पैहम दौर चलते हैं
किसी की उम्र का लबरेज़ होने को है पैमाना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
दिल-ए-जूँ-शम्अ' बहर-ए-दावत-ए-नज़्ज़ारा लायानी
निगह लबरेज़-ए-अश्क ओ सीना मामूर-ए-तमन्ना हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हर ज़र्रा आह जिस का लबरेज़-ए-तिश्नगी है
उस ख़ाक की भी जानिब ऐ अब्र-ए-तर गुज़रना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
डबडबाईं मिरी आँखें तो वो क्या कहते हैं
देखो लबरेज़ हैं छलकेंगे ये पैमाना-ए-इश्क़