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ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
जाने तिरी नहीं के साथ कितने ही जब्र थे कि थे
मैं ने तिरे लिहाज़ में तेरा कहा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
हर शख़्स अपना होता नहीं 'जौन' जान ले
तुझ को कहीं लिहाज़-ओ-मुरव्वत न मार दे