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ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
'शाद' ग़ज़लें नहीं आयात-ए-ज़ुबूर इन को समझ
लहन-ए-दाऊद से कुछ कम नहीं नग़्मा तेरा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
शेर अच्छे हों तो बे-गाए भी मिल जाती है दाद
तू ख़ुदारा लहन के हाथों में मत कश्कोल दे
आफ़ताब शम्सी
ग़ज़ल
जुज़ दिल-ए-अहल-ए-सुख़न लहन में ढल कर इल्हाम
दहर में हर कस-ओ-ना-कस पे तो नाज़िल न हुआ
माहिर बिलग्रामी
ग़ज़ल
सुनाई देता है अब भी मुक़द्दस आग के गिर्द
वो लहन जिस में कई हैरतें पड़ी हुई थीं
ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क
ग़ज़ल
लहन-ए-बुलबुल का चला कौन से गुल पर अफ़्सूँ
सिर्फ़ इक तर्ज़ है तासीर कहाँ से आई