aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مبہم"
मिलें जब उन से तो मुबहम सी गुफ़्तुगू करनाफिर अपने आप से सौ सौ वज़ाहतें करनी
हैं किसी के मुंतज़िर हम मगर ऐ उमीद-ए-मुबहमकहीं वक़्त रह न जाए यूँही करवटें बदल कर
यही सही तिरी मर्ज़ी समझ न पाए हमख़ुदा गवाह कि मुबहम थे कुछ इशारे भी
इक मुअ'म्मा है ज़िंदगी ऐ दोस्तये भी तेरी अदा-ए-मुबहम है
पहले तू लगती थी कितनी बेगानाकितना मुबहम होता है पहली का चाँद
फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़उस ख़ौफ़ का किसी ने ख़ुदा नाम रख दिया
लम्बी रात गुज़र जाए ताबीरों मेंउस का पैकर एक कहानी मुबहम सी
हयात-ए-दोज़ख़ियाँ भी तमाम मुबहम हैअज़ाब भी न मयस्सर हुआ कहाँ की नजात
सदाएँ दोगे पलट कर कभी तो देखोगेहमारे दिल में ये मुबहम गुमान था न रहा
जानी-पहचानी हुई शक्ल भी मुबहम सी लगेज़िंदगी का ये फ़ुसूँ अपनी ही तस्वीर के साथ
साफ़ था हर लफ़्ज़ उस की बे-बदल तक़रीर काफिर लहू ने नक़्श जो छोड़े हैं वो मुबहम नहीं
साथ जितनी देर रह लूँ कौन सा खुलता है वोउस ने दानिस्ता मिरे शेरों को मुबहम कर दिया
लब-ए-एहसास कभी तू किसी क़ाबिल हो जाचूम ले मंज़िल-ए-मुबहम के निशाँ बारिश में
कुछ इशारे इतने मुबहम इतने वाज़ेह इतने शोख़दास्ताँ सारी सुना दी मुद्दआ रहने दिया
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम थाअपना होना और न होना मुबहम था
अज़ल से ता-ब-अबद कोशिश-ए-जवाब है 'शाज़'वो इक सवाल जो मुबहम रहा है आँखों में
जाम में है जो मिशअल-ए-गुल-रंगतेरी आँखों का अक्स-ए-मुबहम है
इक मुबहम लफ़्ज़ इबारत काइक रौशन बोल हिकायत का
हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करतेमुबहम सा इशारा भी गवारा नहीं करते
उठी जाती है दिल से हैबत-ए-आलाम-ए-रूहानीजराहत बहर-ए-क़ल्ब-ए-ज़ार मरहम होती जाती है
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books