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ग़ज़ल
मबादा उस को दिक़्क़त हो निशाने तक पहुँचने में
सो मैं ने फूल से दीवार के रख़्ने को भरना है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
मुबादा क़िस्सा-ए-अहल-ए-जुनूँ ना-गुफ़्ता रह जाए
नए मज़मून का लहजा नया करना पड़ेगा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
मुबादा मुंदमिल ज़ख़्मों की सूरत भूल ही जाएँ
अभी कुछ दिन ये घर बरबाद रखना चाहते हैं