आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "مجروح"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "مجروح"
ग़ज़ल
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमारे बा'द अब महफ़िल में अफ़्साने बयाँ होंगे
बहारें हम को ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दहर में 'मजरूह' कोई जावेदाँ मज़मूँ कहाँ
मैं जिसे छूता गया वो जावेदाँ बनता गया
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ज़ंजीर ओ दीवार ही देखी तुम ने तो 'मजरूह' मगर हम
कूचा कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुम से ज़ियादा
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें
यूँही कब तलक ख़ुदाया ग़म-ए-ज़िंदगी निबाहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
अपना पराया मेहरबाँ ना-मेहरबाँ कोई न हो
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख़ भी बदल गए
तिरा हाथ हाथ में आ गया कि चराग़ राह में जल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है
तिरी इक निगाह की बात है मिरी ज़िंदगी का सवाल है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
कभी तो यूँ भी उमँडते सरिश्क-ए-ग़म 'मजरूह'
कि मेरे ज़ख़्म-ए-तमन्ना के दाग़ धो देते