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ग़ज़ल
तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
ग़ज़ल
तुम अपने हो तो नहीं ग़म किसी मुख़ालिफ़ का
ज़माना क्या है फ़लक क्या है मुद्दई क्या है
अहसन मारहरवी
ग़ज़ल
क्या डर है जो हो सारी ख़ुदाई भी मुख़ालिफ़
काफ़ी है अगर एक ख़ुदा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
महफ़िल महफ़िल ज़िक्र हमारा सोच समझ के कर वाइज़
अपने मुख़ालिफ़ भी हैं कितने और हैं कितने हामी भी
क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
तिरी महफ़िल से उठ कर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री
मुख़ालिफ़ इक जहाँ था जाने बेचारों पे क्या गुज़री
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मैं मुख़ालिफ़ सम्त में चलता रहा हूँ उम्र भर
और जो उस तक गया वो रास्ता भी मैं ही था
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
सियासत जब ज़रूरत हो नया रिश्ता बनाती है
कोई कितना मुख़ालिफ़ हो उसे अपना बनाती है