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ग़ज़ल
जिन से कि हो मरबूत वही तुम को है मैमून
इंसान की सोहबत तुम्हें दरकार कहाँ है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
हमीं दोनों से है मरबूत इश्क़-ओ-हुस्न का आलम
कि इस की इब्तिदा मैं हूँ और इस की इंतिहा तुम हो
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
ज़ीस्त के पैकर में जब मरबूत हो जाता हूँ मैं
बन के दश्त-ए-ला-मकाँ लाहूत हो जाता हूँ मैं
अश्क अलमास
ग़ज़ल
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मरबूत कामयाबी है वारस्तगी के साथ
रख राह-ए-पुर-ख़तर में क़दम पुख़्तगी के साथ
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
ये बात जानना लाज़िम है हर किसी के लिए
निज़ाम-ए-अद्ल से मरबूत है ख़ुदा का शुऊ'र
मोहम्मद शाहिद फ़ीरोज़
ग़ज़ल
ऐ हसीनान-ए-जहाँ अहल-ए-हवस से होशियार
वर्ना हुस्न-ओ-इश्क़ से मरबूत अफ़्साने गए
मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर
ग़ज़ल
तुम टहनियों की फुल-झड़ियों से जश्न-ए-शाह-बलूत मनाना
शहज़ादे के शगूफ़े को इक शाख़चा-ए-मज़बूत बताना
यासिर इक़बाल
ग़ज़ल
मैं बिखरे लम्हे का मोती सदियों से मरबूत
मेरे जिस्म से हो कर गुज़रे बरसों के धागे