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ग़ज़ल
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं
आसी उल्दनी
ग़ज़ल
वो किताब-ए-ज़िंदगी ही न हुई मुरत्तब अब तक
कि हम इंतिसाब जिस का तिरे नाम चाहते हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ग़ज़ल
शब-ए-ग़म ऐ तसव्वुर उन को मजबूर-ए-तबस्सुम कर
मुरत्तब इस उजाले में हम अपनी दास्ताँ कर लें
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-कौनैन मुरत्तब हुई तेरी ख़ातिर
वक़्त है तेरे लिए इस में जो माल अच्छा है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हुस्न में हो इश्क़ की बू इश्क़ में हो रंग-ए-हुस्न
फिर मुरत्तब रंग-ओ-बू-ए-नौ से इक दुनिया करें
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
मुरत्तब हो के इक महशर ग़ुबार-ए-दिल से निकलेगा
नया इक कारवाँ गर्द-ए-रह-ए-मंज़िल से निकलेगा