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ग़ज़ल
मुद्दई' इल्म का है जेहल-ए-मुरक्कब ला-रैब
क़ौल फ़ैसल है फ़रामोश ये इरशाद न कर
अब्दुल रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराईची
ग़ज़ल
बहाता हूँ कहीं अपने सिफ़ाल-ए-बे-मुरक्कब को
मैं गिर्ये के दिनों में चाक-ए-दुनिया पर नहीं होता
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
जो यहाँ मग़्लूब है उक़्बा में ग़ालिब है वही
मरकब-ए-मक़्तूल है इक रोज़ जो क़ातिल हुआ
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हमारा सज्दा है हर गाम पर पीर-ए-तरीक़त को
सुलूक-ए-इश्क़ में सर है क़दम मरकब से क्या मतलब
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
उन की फ़ितरत में तग़ाफ़ुल भी मुरक्कब था 'नफ़स'
हम ही नादाँ थे जो जज़्बात में घर से निकले
नफ़स अम्बालवी
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
ख़ुदा जाने ये इल्म-ए-हैअत-ए-अश्या कहाँ ठहरे
जिसे उंसुर सा समझा था मुरक्कब सा निकल आया
इमरान शमशाद नरमी
ग़ज़ल
जहाँ में कौन था दोश-ए-नबी जिस का था मुरक्कब
इसी ख़ातिर बरहना-पाई ने तुझ सा चुना था