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ग़ज़ल
चाँदनी-चौक को सीना कहें और क़िलअ' को सर
मस्जिद-ए-जामे को ठहराएँ मियान-ए-देहली
मोहम्मद अहसन खां अहसन
ग़ज़ल
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
बराबर मस्जिद-ए-जामे के हम ने अब दुकाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शाहिद अनवर
ग़ज़ल
जाते तो हो मय-ख़ाने मस्जिद में भी यक साअ'त
वाइ'ज़ का मुहिब सुनते खड़्ड़ाग चले जाना
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
कल नश्शे में था वो बुत मस्जिद में गर आ जाता
ईमाँ से कहो यारो फिर किस से रहा जाता
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
تکبر کے جو مسند پر غروری کا جو تکیہ دھر
رہا کیا بیٹھ غفلت کر تجھے دنیا تھے جانا ہے