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ग़ज़ल
रगड़वाईं ये मुझ से एड़ियाँ ग़ुर्बत में वहशत ने
हुआ मसदूद रस्ता जादा-ए-राह-ए-वतन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
वापस जाने के सब रस्ते मैं ने ख़ुद मसदूद किए
कश्ती और पतवार जला कर मैं ने ख़ुद को रोका है
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
नेकियों के रास्ते महदूद थे मसदूद थे
फिर भी 'अख़्गर' ख़ुश-ख़िसालों का सफ़र जारी रहा
अख़गर पानीपती
ग़ज़ल
किसी भी सीधे रस्ते का सफ़र मिलता उसे क्यूँ-कर
कि वो मसदूद ख़ुद अपने बनाए दाएरों का था