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ग़ज़ल
घेर कर मुझ को भी लटका दिया मस्लूब के साथ
मैं ने लोगों से ये पूछा था कि क़िस्सा क्या है
शाहिद कबीर
ग़ज़ल
मुझ को नफ़रत से नहीं प्यार से मस्लूब करो
मैं तो शामिल हूँ मोहब्बत के गुनहगारों में