आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "مضراب"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "مضراب"
ग़ज़ल
वो हवाएँ वो घटाएँ वो फ़ज़ा वो उस की याद
हम भी मिज़राब-ए-अलम से साज़-ए-दिल छेड़ा किए
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
वाँ हुजूम-ए-नग़्मा-हाए साज़-ए-इशरत था 'असद'
नाख़ुन-ए-ग़म याँ सर-ए-तार-ए-नफ़स मिज़राब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बर्बत-ए-माह पे मिज़राब-ए-फ़ुग़ाँ रख दी थी
मैं ने इक नग़्मा सुनाया था तुम्हें याद नहीं
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
फिर तो मिज़राब-ए-जुनूँ साज़-ए-अना-लैला छेड़
हाए वो शोर-ए-अनल-क़ैस कि महमिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
अल्लाह अल्लाह क्या इनायत कर गई मिज़राब-ए-इश्क़
वर्ना साज़-ए-ज़िंदगी को बे-सदा समझा था मैं
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
मिज़राब ही से साज़ में है सारी नग़्मगी
है ज़िंदगी का लुत्फ़ निहाँ इज़्तिराब में
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
अभी तक पानियों में सुरमई साए उतरते हैं
अभी तक धड़कनों में दर्द की मिज़राब ज़िंदा है
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
सीना क़ानून ओ ग़िना नाला ओ दिल है मिज़राब
निकले है साज़-ए-मोहब्बत से सदा क्या क्या कुछ