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ग़ज़ल
मैं मुज़्तरिब हूँ वस्ल में ख़ौफ़-ए-रक़ीब से
डाला है तुम को वहम ने किस पेच-ओ-ताब में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अभी बादबान को तह रखो अभी मुज़्तरिब है रुख़-ए-हवा
किसी रास्ते में है मुंतज़िर वो सुकूँ जो आ के चला गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
क्या किसी सफ़ीने को आरज़ू-ए-साहिल है
अमीर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
निगाहें मुज़्तरिब उतरा हुआ चेहरा ज़बाँ साकित
जो थी अपनी वही अब उन की हालत होती जाती है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
एक हैरत से लिपटी हुई इक सुबुक-दोशी-ए-पैरहन
मुज़्तरिब है अचानक बिछड़ जाने वाली हया के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
मुज़्तर हूँ किस का तर्ज़-ए-सुख़न से समझ गया
अब ज़िक्र क्या है सामा-ए-आक़िल को थामना
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
वो तूल खींचा बला का तिरे तग़ाफ़ुल ने
कि सब्र आ ही गया मेरे मुज़्तरिब दिल को
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
क़िबला-ओ-का'बा ख़ुदा-वंद-ओ-मलाज़-ओ-मुशफ़िक़
मुज़्तरिब हो के उसे मैं ने लिखा क्या क्या कुछ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
'आशिक़ों के लिए किस काम का है सब्र-ओ-क़रार
जो तिरे ग़म में रहे मुज़्तरिब-ए-हाल अच्छा है