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ग़ज़ल
बज़्म-ए-अहबाब में हासिल न हुआ चैन मुझे
मुतमइन दिल है बहुत, जब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुतमइन रहा हूँ
तिरा जिस्म बे-तग़य्युर मिरा प्यार जावेदाँ है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
वो अपनी जगह ख़ुश-गुमाँ थी कि दाइम है पहली मोहब्बत
मैं अपने तईं मुतमइन था कि ये दूसरा तजरबा है
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
दिल-ए-ना-मुतमइन ऐसा भी क्या मायूस रहना
जो ख़ल्क़ उट्ठी तो सब कर्तब तमाशा ख़त्म होगा