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ग़ज़ल
मिले तुझ से तो दुनिया को सुहानी लिख दिया हम ने
वगर्ना कब से उस को बे-मआ'नी लिख रहे थे हम
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
इसी ख़ातिर मिरे चारों तरफ़ फैला है सन्नाटा
कहीं मैं अपने लफ़्ज़ों के मआनी छोड़ आया हूँ
नदीम भाभा
ग़ज़ल
देखा गया न मुझ से मआनी का क़त्ल-ए-आम
चुप-चाप मैं ही लफ़्ज़ों के लश्कर से कट गया