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ग़ज़ल
देख के ख़ुश्क ओ ज़र्द फूल दिल है कुछ इस तरह मलूल
जैसे मिरी ख़िज़ाँ के बाद दौर-ए-बहार ही नहीं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
वही शुक्र है जो सिपास है वो मलूल है जो उदास है
जिसे शिकवा कहते हो है गिला तुम्हें याद हो कि न याद हो
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए
बहार-वादी से जितने पंछी इधर को आए मलूल आए
एज़ाज़ अहमद आज़र
ग़ज़ल
तुम कह रहे हो इस लिए हँसते हैं वर्ना तो
हम जितने दिल मलूल हैं हँसते नहीं कभी
फ़ैसल इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
ये रेज़ा रेज़ा सी आरज़ूएँ कभी तो कर दे मिरे हवाले
मैं अपने बिखरे बदन की मानिंद देखता हूँ मलूल तुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
झगड़ा ही तुम चुका दो जब तेग़ खींच ली है
आफ़त में फिर न मुझ को जान-ए-मलूल डाले