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ग़ज़ल
गिरते ख़ेमे जलती तनाबें आग का दरिया ख़ून की नहर
ऐसे मुनज़्ज़म मंसूबों को दूँ कैसे आफ़ात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
उस काफ़िर ऐसी मस्ताना रफ़्तार कहाँ से लाएँगे
अशआर मुजस्सम हो जाएँ अफ़्कार मुनज़्ज़म हो जाएँ
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
हम ख़ुद ही नहीं चाहते सय्याद से बचना
साज़िश निगह-ओ-दिल की मुनज़्ज़म भी बहुत है