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ग़ज़ल
मिरे मास्टर न होते जो उलूम-ओ-फ़न में दाना
कभी मौला-बख़्श-साहब का न मैं शिकार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
मौला, फिर मिरे सहरा से बिन बरसे बादल लौट गए
ख़ैर, शिकायत कोई नहीं है अगले बरस बरसा देना
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जा के औरों से बदो याद-फ़रामोश वले
ख़ु़द-फ़रामोशों को मौला मिरी तुम याद रहो
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे मौला ख़ैर करे
इक मूरत को चाहे फिर का'बे को दैर करे मौला ख़ैर करे
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
तू गिरोह-ए-फ़ुक़रा को न समझ बे-जबरूत
ज़ात-ए-मौला में यही लोग समा सकते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मुफ़्लिसी ऐसी अदू को भी न बख़्शे मौला
बेचना हो जो चराग़ाँ रौशनी की ख़ातिर
आदित्य श्रीवास्तव शफ़क़
ग़ज़ल
जिधर देखूँ उधर ही रहज़नों की भीड़ है मौला
सफ़र में साथ चलने को मुझे रहबर दिया जाए