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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुझ को मोतियों से क्या लेना 'ज़ेब' समुंदर भी
जाने क्या मिरे अश्कों की सौग़ातें करता है
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
हयात सिर्फ़ तिरे मोतियों का नाम नहीं
दिलों की बिखरी हुई ख़ाक छानता है तो आ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इसी उम्मीद पर सब अश्क में ने सर्फ़ कर डाले
अगर इन मोतियों में एक भी सच्चा निकल आया