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ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
हमारी उम्र मकड़ी है हमें इतना बताने को
बदन पर झुर्रियों की शक्ल में जाले पड़े होंगे
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
मकड़ी के जालों में कब से क़ैद हैं रौशन-दान मिरे
हाए क्या सोचेंगे घर को देख के कल मेहमान मिरे