आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ناریل"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ناریل"
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
उंसुर है ख़ैर ओ शर का हर इक शय में यूँ निहाँ
हर शम'-ए-बज़्म नूरी-ओ-नारी है जिस तरह
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
मुलाइम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़ की सूरत
उठा सीना सफ़ा पेड़ू अजब जोबन की नारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी
रवाँ ये बे-हिस उदास नहरें हमारे जाने के बाद होंगी
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
देखा न तुझे ऐ रब हम ने हाँ दुनिया तेरी देखी है
सड़कों पर भूके बच्चे भी कोठे पर अब्ला नारी भी
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
समुंदर भी है दरिया भी है चश्मे भी हैं नहरें भी
और इंसाँ है कि अब तक तिश्नगी मालूम होती है
शफ़ीक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
तुम ही सदियों से ये नहरें बंद करते आए हो
मुझ को लगती है तुम्हारी शक्ल पहचानी हुई
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जाता हूँ जब ख़िज़ाँ में निहालों के सामने
आँखों से नहरें बहती हैं थालों के सामने
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
निकलेंगी चटानों से मिरी फ़िक्र की नहरें
मैं लफ़्ज़ के तेशे से उन्हें काट रहा हूँ
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
बाग़ में नहरें भरी हैं फूल फल का था मज़ा
बंद हैं कुंज-ए-क़फ़स में दाना-पानी अब कहाँ