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ग़ज़ल
हैरत का एक अपना हुस्न भी है लर्ज़ा देने वाला
कोई परेशानी नहीं उस के नबातात के बारे में
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
बाग़बाँ जब तईं हाथ आवे तिरे बज़्र-उल-बंज
मेरी तुर्बत पे न बो और नबातात के बीज
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
तिरे दर से भी निबाहे, दर-ए-ग़ैर को भी चाहे
मिरे सर को ये इजाज़त कभी थी न है न होगी