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ग़ज़ल
नस्र में जो कुछ कह नहीं सकता शेर में कहता हूँ
इस मुश्किल में भी मुझ को आसानी होती है
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
आ जाए कोई दम में तो क्या कुछ न कीजिए
इशक़-ए-मजाज़-ओ-चश्म-ए-हक़ीक़त-निगर ग़लत
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
वो लुत्फ़ वो मिठास कहाँ सब को है नसीब
नज़्म-ओ-नस्र को देख लो शीरीं बयान है
अब्दुल क़ादिर अहक़र अज़ीजज़ि
ग़ज़ल
नस्र में मुझ को 'नज़ीर' आए थे ये नुक्ते नज़र
मैं ने नज़्म इन को किया तो दिल हो हर दम शादमाँ
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जो नज़्म-ओ-नस्र का है फ़र्क़ उस को क़ाएम रख
अदब की कर न यूँ मिट्टी पलीद तौबा कर
अब्दुस्सलाम आसिम
ग़ज़ल
लिया है तेरी मोहब्बत से ये असर मैं ने
कि ज़िंदगी पे भी डाली है इक नज़र मैं ने
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
ख़ाज़िन हूँ नज़्म-ओ-नस्र के सरमाए का मगर
मुमकिन नहीं है मुझ से किताबों का कारोबार
अब्दुस्सलाम आसिम
ग़ज़ल
दाना-ए-अँगूर अख़्तर चाँदनी मय माह जाम
नस्र-ए-ताएर बत क़राबा चर्ख़ मीना हो गया