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ग़ज़ल
इसी अंदाज़ से झूमेगा मौसम गाएगी दुनिया
मोहब्बत फिर हसीं होगी नज़ारे फिर जवाँ होंगे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
कभी अपना भी नज़ारा किया है तू ने ऐ मजनूँ
कि लैला की तरह तू ख़ुद भी है महमिल-नशीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
क्यूँ न जज़्ब हो जाएँ इस हसीं नज़ारे में
रौशनी का झुरमुट है मस्तियों का घेरा है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
اگر کوئي شے نہيں ہے پنہاں تو کيوں سراپا تلاش ہوں ميں
نگہ کو نظارے کي تمنا ہے، دل کو سودا ہے جستجو کا