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ग़ज़ल
वही नक़्स है वही खोट है वही ज़र्ब है वही चोट है
वही सूद है वही फ़ाएदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
भरी है अंजुमन लेकिन किसी से दिल नहीं मिलता
हमीं में आ गया कुछ नक़्स या कामिल नहीं मिलता
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ये एहतियात-कदा है कड़े उसूलों का
ज़रा से नक़्स पे 'बानी' यहाँ सज़ा है बहुत
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
यही जम्हूरियत का नक़्स है जो तख्त-ए-शाही पर
कभी मक्कार बैठे हैं कभी ग़द्दार बैठे हैं
डॉक्टर आज़म
ग़ज़ल
तमईज़-ए-कमाल-ओ-नक़्स उठा ये तो रौशन है दुनिया पर
मैं चंदन हूँ तू कुंदन है मैं मिट्टी हूँ तू सोना है
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
उस को हर शब है ज़वाल उस को नहीं है कुछ नक़्स
बद्र को चेहरे से उस के मुतमस्सिल न करो