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ग़ज़ल
सवाद चश्म-ए-बिस्मिल इंतिख़ाब-ए-नुक़्ता आराई
ख़िराम-ए-नाज़ बेपरवाई-ए-क़ातिल पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हे की पर शक्ल हवासिल की सी आती है नज़र
नुक़्ता इस पर जो लगा ख़े हुआ ये वाह बे ख़े
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तुम्हारे मतला-ए-अबरू पे ये कहे है ख़ाल
कि ऐसा नुक़्ता कोई वक़्त-ए-इंतिख़ाब तो दे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
सनम की ज़ुल्फ़ के हल्क़े में है ज्यूँ जीम का नुक़्ता
अजब है ख़ुश-नुमा उस आरिज़-ए-गुलगूँ पे ख़ाल उस का
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ख़िरद ब-क़द्र-ए-रसाई तो उन के इल्म को जान
मैं ना-रसाई का नुक़्ता हूँ उन को क्या जानूँ
आसी करनाली
ग़ज़ल
कलाम-ए-नुक़्ता-ए-इल्म मुख़्तसर है सब मआनी का
बयान-ए-मंतिक़-ए-दर्सी कूँ नीं अंजाम ऐ वाइ'ज़