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ग़ज़ल
नौशादर गंधक की ज़बाँ में शेर कहें इस युग में
सच के नीले ज़हर को लहजे के तेज़ाब में घोलें
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
क्या दबदबा-ए-नादिर क्या शौकत-ए-तैमूरी
हो जाते हैं सब दफ़्तर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब आख़िर
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा
इक चेहरा कुम्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वो अपने गाँव की गलियाँ थीं दिल जिन में नाचता गाता था
अब इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
मिरे नाशाद रहने से अगर तुझ को मसर्रत है
तो मैं नाशाद ही अच्छा मुझे नाशाद रहने दे
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
लगता नहीं कहीं भी मिरा दिल तिरे बग़ैर
दोनों जहाँ नहीं मिरे क़ाबिल तिरे बग़ैर
नादिर शाहजहाँ पुरी
ग़ज़ल
बढ़ा लोगे अगर तुम फ़ासले मुझ से कभी 'आज़िम'
तो रूदाद-ए-दिल-ए-नाशाद फिर किस को सुनाओगे
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
दिल-ए-नाशाद रोता है ज़बाँ उफ़ कर नहीं सकती
कोई सुनता नहीं यूँ बे-नवा फ़रियाद करते हैं