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ग़ज़ल
तर्ज़-ए-निगाह-ए-इज्ज़ यही अर्ज़-ए-हाल है
ऐ रम्ज़-दाँ हमन के अँखियों का कलाम जान
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
दर्द बढ़ते बढ़ते आप अपना मुदावा हो गया
आँख से आँसू बहे तो जी भी हल्का हो गया
सय्यद अख़्तर अली अख़्तर
ग़ज़ल
नियाज़-ओ-इज्ज़ मुझे नाज़-ए-संग-ए-दर से मिला
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मिला जो तिरी नज़र से मिला
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
अभी या-रब बहुत कुछ वुसअ'तें हैं मेरे दामाँ में
चमन का काँटा काँटा खिंच के आ जाए बयाबाँ में